Thave mandir ki Kahani: देशभर में आज 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि (Navratri 2023) शुरू हो गया है. इस मौके पर गोपालगंज के थावे दुर्गा मंदिर (gopalganj bihar thawe mandir) का जिक्र न हो ऐसा नामुमकिन है. गोपालगंज का थावे दुर्गा मंदिर उत्तर बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। जहां पूरे वर्ष आस्थावानों का तांता लगा रहता है।
![Thave mandir ki Kahani: जब कलियुग में माँ ने अपने भक्त के सिर को फाड़ कर उसमें अपने कंगन और हाथ के दर्शन कराये। Thave mandir ki Kahani Navratri Special](https://tajanews24.in/wp-content/uploads/2023/10/video_image-o2HqZgGm-1-1024x576.jpeg)
लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा की जाती है। इसी वजह से यहां हर दिन नवरात्रि के दौरान कई भक्त मां दुर्गा के दर्शन और पूजा के लिए आते हैं। थावे दुर्गा मंदिर को लेकर एक बेहद रोचक पौराणिक कहानियां भी प्रचलित हैं। तो चलिए आपको बताते ह इस कथा (Thave mandir ki Kahani) के बारे में,
थावे मंदिर कहा है ? (Thawe mandir kahan padta hai)
थावे मंदिर, माँ थावेवाली का मंदिर भारत के बिहार राज्य के गोपालगंज जिले के थावे में स्थित है। यह गोपालगंज-सिवान राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोपालगंज शहर से केवल 6 किमी दूर है। जिला मुख्यालय से 6 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक गाँव स्थित है जहाँ मसरख-थावे खंड के पूर्वोत्तर रेलवे और सीवान-गोरखपुर लूप-लाइन का एक जंक्शन स्टेशन “थावे” है।
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गाँव का किला
गाँव में एक पुराना किला है लेकिन किले का इतिहास (Thave mandir ki Kahani) अस्पष्ट है। हथवा के राजा का वहां एक महल था लेकिन वह अब जर्जर अवस्था में है। हथवा राजा के निवास के पास ही देवी दुर्गा को समर्पित एक पुराना मंदिर है। मंदिर के परिसर में एक अनोखा पेड़ है, जिसके वानस्पतिक परिवार की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है। पेड़ क्रॉस की तरह बड़ा हो गया है.
मूर्ति और पेड़ के संबंध में विभिन्न किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। प्रतिवर्ष चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। थावेवाली मां माँ शक्ति के अनेक नाम और रूप हैं। भक्त उन्हें कई नामों से, कई रूपों में पूजते हैं, मां थावेवाली उनमें से एक हैं। पूरे भारत में 52 “शक्तिपीठ” हैं, यह स्थान भी “शक्तिपीठ” की तरह है।
माता ने दिए अपने भक्त को दर्शन
माँ अपने महान भक्त “श्री रहषु भगत जी” की प्रार्थना पर अपने दूसरे पवित्र स्थान कामरूप, असम से यहाँ पहुँची हैं जहाँ वे “माँ कामाख्या” के नाम से प्रसिद्ध हैं। माँ को “सिंघासिनी देवी” “रहषु भवानी” के नाम से भी जाना जाता है।
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थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की कहानी (Thave mandir ki Kahani)
थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की कहानी काफी दिलचस्प है. चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त मानते थे, तभी अचानक राजा के राज्य में अकाल पड़ गया। उसी समय थावे में माता रानी का एक भक्त था. जब रहषु बाघ के पास से भागा तो चावल निकलने लगा। इसलिए वहां के लोगों को अनाज मिलना शुरू हो गया.
यह बात राजा तक पहुंची, लेकिन राजा को इस पर विश्वास नहीं हुआ। राजा ने रहषु का विरोध किया और उसे पाखंडी कहा और रहषु से अपनी मां को यहां बुलाने को कहा। इस पर रहषु ने राजा से कहा कि यदि मां यहां आईं तो राज्य को नष्ट कर देंगी, लेकिन राजा नहीं माना। रहषु भगत के आह्वान पर देवी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंचीं। राजा की सभी इमारतें ढह गईं। तभी राजा की मृत्यु हो गयी.
थावे माँ भवानी का प्रसिद्ध प्रसाद है – पिडकिया (Thave mandir prasad)
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पिडकिया थावे मां का मुख्य प्रसाद है। यहां आने वाले सभी भक्त मुख्य व्यंजन मीठी पेडुकिया का आनंद लेते हैं। कुछ लोग यहां से कुछ ये प्रसिद्ध प्रसाद घर ले जाने के लिए भी पैक करते हैं। प्रति वर्ष यहां थावे महोत्सव का आयोजन गोपालगंज जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां कई शौचालय बनाए गए हैं। सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. नवरात्र के दौरान यहां विशेष प्रशाशन व्यवस्था की जाती है।