Jai Durga Shakti Peeth: झारखंड के छोटे से शहर देवघर (बाबा वैद्यनाथ धाम) में 51 शक्तिपीठों में से एक जयदुर्गा शक्तिपीठ स्थित है। राजधानी रांची से 254 किमी दूर वैद्यनाथधाम में माता सती का हृदय गिरा था। इसे हृदयपीठ और यहीं हृदय का दाह संस्कार होने की वजह से चिताभूमि भी कहते हैं। इसी हृदय में 9वें ज्योतिर्लिंग के रूप में शिवलिंग भी स्थापित है
![Jai Durga Shakti Peeth: यहां गिरा था माता सती का हृदय, एकमात्र तीर्थस्थान जहां महादेव और माता सती एक साथ विराजमान है Jai Durga Shakti Peeth](https://tajanews24.in/wp-content/uploads/2023/10/Jai-Durga-Shakti-Peeth-1024x576.jpg)
क्यों की जाती है शिव से पहले शक्ति की पूजा
यह एकमात्र तीर्थस्थान (Jai Durga Shakti Peeth) है जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक साथ हैं। यहां आदिशक्ति के साथ भगवान शिव वास करते हैं और शिव से पहले शक्ति की पूजा होती है। बाबा मंदिर के 22 मंदिरों में एक भी मंदिर माता सती का नहीं है। माता सती पर ही ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। इसलिए, एक ही गर्भगृह में माता सती और शिव की अर्चना की जाती है। रोज शाम माता सती और महादेव का शृंगार किया जाता है। शिवलिंग में ही मौजूद सती स्वरूप में पुष्पगुच्छ और पीसा हुआ चंदन शिवलिंग में रखकर माता का आवाहन और मंत्रोच्चारण शुरू होता है।
किस सामग्री से की जाती है शिवलिंग की पूजा
Jai Durga Shakti Peeth मंदिर में सबसे पहले शिवलिंग को फुलेल नाम के विशेष किस्म के इत्र, बेलपत्र- फूल और अन्य सामग्रियों से बाबा को सजाया जाता है। अंत में सालों से चले आ रहे रिवाज के अनुसार देवघर सेंट्रल जेल के कैदियों द्वारा फूलों, बेलपत्रों से बनाए गए नाग पुष्प मुकुट से बाबा का आवरण किया जाता है। नाग पुष्प मुकुट अगले दिन भोर में 4 बजे कांचा पूजा में हटाया जाता है। इसके बाद मंदिर में आम भक्तों का दर्शन और जलार्पण का सिलसिला आरंभ होता है।
नवरात्र में होती है विशेष पूजा (Jai Durga Shakti Peeth special pooja)
नवरात्र के दौरान यहां तीन तरह से माता की पूजा होती है। पहले नवरात्र से दशमी तक रोज 10 हजार कनेल के फूल से हवन करते हैं। मंदिर में स्थित जगत जननी मंदिर और महाकाल भैरव मंदिर में पंचमी से दशमी तक पूजा की जाती है। पंचमी से दशमी तक अखंड दीप जलाकर मां दुर्गा की आराधना होती है। तीसरी विधि में महासप्तमी से विजयादशमी तक मंदिर कार्यालय में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। सप्तमी से दशमी तक मंदिर प्रांगण में स्थित मां काली, मां पार्वती व संध्या मंदिर के द्वार भक्तों के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
जमीन पर रखने से स्थापित हुआ ज्योतिर्लिंग
रावण भगवान शिव को प्रसन्न कर कामनारूपी लिंग के रूप में लंका ले जा रहा था। शर्त यह थी कि शिवलिंग जहां जमीन पर रखा जाएगा बाबा वहीं बस जाएंगें। रावण देवघर पहुंचे तो उन्हें लघु शंका लगी। इसलिए, उन्होंने शिवलिंग वहां ग्वाले के भेष में मौजूद भगवान विष्णु को थामने को दिया । विष्णु ने शिवलिंग जहां सती का हृदय गिरा था, वहीं जमीन पर रख दिया। ऐसे ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई और स्थान बाबा वैद्यनाथ धाम कहलाया ।