Jitiya Puja Vidhi and Vrat Katha: इस साल जितिया अर्थात जीवित्पुत्रिका व्रत (Jitiya Vrat) इस साल 6 अक्टूबर को रखा जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार जितिया अर्थात जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से नवमी तिथि तक रखा जाता है। इस व्रत में महिलाओं को एक दिन पहले से तामसिक भोजन जैसे कि प्यार लहसुन मांसाहार का सेवन नहीं करना होता इसके साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत जरूरी होता है। ये व्रत महिलाएं 24 घंटे निर्जल रहकर करती है। इस व्रत के पुण्यात प्रताप से संतान की आयु लंबी होती है।
जितिया व्रत का महत्व क्या है? (Jitiya vrat importance in hindi)
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत (Jitiya Vrat) सुहागन महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना के लिए करते हैं महिलाएं 24 घंटे का निर्जल उपवास करते हैं। व्रत के पुण्य प्रताप से संतान की आयु लंबी होती है। जितिया व्रत (Jitiya Vrat) अर्थात जीवित्पुत्रिका व्रत करने से नव विवाहित महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है। जीवित्पुत्रिका व्रत (Jitiya Vrat) की अष्टमी तिथि से लेकर किया जाता है। इस तरफ को उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड और पश्चिम बंगाल की माताएं अपने पुत्र की लंबी आयु समृद्धि के लिए 24 घंटे का व्रत रखती हैं।
जितिया व्रत कब है इस साल? (Jitiya kab hai)
जीवित्पुत्रिका व्रत अर्थात जितिया व्रत (Jitiya Vrat) 5 अक्टूबर की रात से शुरू होगा और 7 अक्टूबर तक चलेगा यह त्यौहार तीन दिन तक चलता है। इस व्रत (Jitiya Vrat) की शुरुआत नहाए खाए से होती है। 5 अक्टूबर को नहाए खाए से इस व्रत (Jitiya Vrat) की शुरुआत होगी। पहले दिन नहाए खाए, दूसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन व्रत पारण किया जाता है। 5 अक्टूबर को नहाए खाए थे इस व्रत (Jitiya Vrat) की शुरुआत होगी और 6 अक्टूबर को महिलाएं निर्जला व्रत रखेंगे और इस व्रत का पारण 7 अक्टूबर को किया जाएगा।
जितिया व्रत विधि (Jitiya vrat vidhi in hindi)
हिंदू धर्म में यह सबसे कठिन व्रत (Jitiya Vrat) में से एक मन जाता है। इस जितिया व्रत (Jitiya Vrat) में छठ पूजा की ही तरह एक दिन पहले नहाए खाए किया जाता है। नहाय खाए से मतलब होता है कि इस दिन में नहा धोकर पूजा करने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है। नहाय खाए के अगले दिन 24 घंटे निर्जला व्रत किया जाता है। उसके तीसरे दिन जाकर इस व्रत का पारण होता है।
जितिया (Jitiya Vrat) के नहाए खाए के दिन महिलाओं को सुबह उथकर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। अगर आप किसी नदी में स्नान नहीं कर सकते तो पानी में गंगा जल डालकर स्नान कर सकते हैं। उसके बाद सुबह पूजा के समय खीरे और चने का भोग लगाकर छत पर रख देना चाहिए। ऐसा मन जाता है कि यह भोजन चिल और सियार के लिए रखा जाता है।
उसके नहाए खाए कि शाम को पूजा के बाद महिलाएं मरुवा के आटे की रोटी, नोनी साग आदि भोजन में कर सकती है। बिहार के कुछ इलाकों में नहाए खाए के दिन मछली का जोर और मारवा की रोटी खाने की परंपरा है। नहाए खाए कि अगले दिन जब से ही अष्टमी तिथि का आरंभ होता है जितिया का व्रत भी शुरू हो जाता है। तब से लेकर जब तक अष्टमी तिथि समाप्त नहीं होती यह व्रत चलता रहता है तो आप भी विधि से नहाएं खाये कर सकते हैं।
जितिया व्रत कथा (Jitiya vrat katha)
आज कृष्ण पक्ष आश्विन माह की सप्तमी तिथि है। और आज जूतियां व्रत (Jitiya Vrat) की नहाए खाए का दिन है। आज से ही जूतियां व्रत (Jitiya Vrat) प्रारंभ हो रहा है जो तीन दिन का बड़ा ही कठिन व्रत माना जाता है। आज हम जितिया व्रत (Jitiya Vrat) की असली नहाए खाए कथा का श्रवण करेंगे। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र व्रत कथा को सुनने वाली स्त्री को कभी संतान वियोग नहीं सहना पड़ता। वह भगवान की कृपा से माता जब तक जीवित रहती हैं तब तक उसे स्त्री के पुत्र का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।
इस जूतियां व्रत (Jitiya Vrat) को करने तथा कथा को सुनने से संतान की प्राप्ति होती है। संतान दीर्घायु वाला होता है। सुख समृद्धि लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। सभी संकट नष्ट हो जाते हैं। तो आज हम श्रवण करेंगे भगवान जितिया माँ की बड़ी ही दुर्लभ कथा आप सभी भक्तगण इस कथा को बड़ी श्रद्धा और प्रसन्नचित मन से सुनिएगा।
बहुत समय पहले की बात है नैमिषारण्य में सहस्त्रों ऋषि मुनि बैठकर धर्म चर्चा कर रहे थे। ऋषियों और मुनियों के साथ ही अनेक देवता भी उसे सभा में उपस्थित हुए थे। उन ऋषि मुनियों के मध्य शुक जी महाराज इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे जिस प्रकार से तारागणों के मध्य चंद्रमा सुशोभित होता है। इस धर्म चर्चा के बीच ही महर्षियों ने संसार के कल्याण हेतु हाथ जोड़कर शुक की से कहा महाराज कलयुग में मनुष्यों की आयु और श्रद्धा दोनों ही काफी कम हो जाएगी। लोग अल्प आयु होंगे महिलाओं की संताने बचपन में ही मरने लग जाएंगे और माता-पिता के जीवित रहते ही उनके पुत्र मर जाया करेंगे।
एक ऋषि ने हाथ जोड़कर आगे कहा महाराज इस भीषण विपत्ति से बचने का कोई उपाय होगा? शुक जी बोले आपने बहुत ही उत्तम प्रश्न पूछा है, काली काल में जब मनुष्यों की आयु कम होगी और श्रद्धा भक्ति उसे भी कम होगी तब काली काल में माता-पिता के सामने उनके छोटे-छोटे बच्चों और जवान पुत्रों का मारना एक सामान्य बात हो जाएगी। उसे समय जो भी माता नियम पूर्वक इस जीवित्पुत्रिका व्रत को करेंगे उसके सभी पुत्र पूरी आयु तक जीवित रहेंगे। माता-पिता के रहते हुए किसी भी पुत्र की मृत्यु नहीं होगी। संसार की भलाई के लिए मैं इस संपूर्ण वृतांत को कहता हूं।
शुक जी ने कहा जब द्वापर युग का अंत होकर कलयुग प्रारंभ हो रहा था। उसे कल में अपने-अपने पुत्रों की मृत्यु से दुखी बहुत सी शोकाकुल स्त्रियों ने आपस में सलाह कि वे सभी मिलकर महर्षि गौतम जी के पास गई उन सभी स्त्रियों ने महर्षि गौतम की वंदना की और कहा हे प्रभु अब कलयुग आ रहा है। कलयुग में लोगों के पुत्र किस तरह पूर्ण आयु तक जीवित रहेंगे? और माता-पिता के जीवित रहते मृत्यु को प्राप्त नहीं होंगे इसके लिए कोई उपाय बताइए और कोई ऐसा व्रत जब तक अथवा पूजा हो तो हमें कहिए।
गौतम जी ने कहा मैं आपको एक प्राचीन वृतांत सुनाते हूं ध्यान पूर्वक सुनिए। महर्षि गौतम बोले महाभारत का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद एक रात्रि में द्रोपती के पांच सोते हुए पुत्रों की द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने हत्या कर दी थी। द्रौपदी सहित पांचो पांडव बहुत ही अधिक दुखी हुए। कुछ समय बाद अपने सखियों को साथ में लेकर द्रोपती महर्षि धुमय के पास गई। द्रोपती ने महर्षि धाम में से कहा हे मुनिवर कौन सा उपाय करने से संतान दीर्घायु हो सकते हैं? कृपा करके वह उपाय हमको बताइए।
महर्षि धौम्य में बोले सतयुग में हमेशा सत्य बोलने वाला और सभी के साथ समान व्यवहार करने वाला जीमूतवाहन वहां नामक एक राजा था। हमेशा सत्य आचरण करने वाला राजा जीमूतवाहन बड़ी ही साहसी और रहम दिल था। एक बार राजा जीमूतवाहन वहां अपनी रानी सहित अपने ससुराल गया वहीं एक रात ससुराल में सो रहा था कि उसे एक स्त्री के बिलख बिलख कर रोने की आवाज सुनाई दी। वह अपने पुत्र के लिए विलाप कर रही थी।
वह स्त्री बुरी तरह रोते हुए बार-बार एक ही बात कह रही थी कि मुझे बुढ़िया के जीवित रहते मेरा युवा पुत्र मर गया है मैं क्या करूं उसे बुढ़िया का विलाप सुनकर राजा की जीमूतवाहन को बहुत दुख हुआ। राजा ने बुढ़िया के पास जाकर उन्हें धड़क बढ़ाया और रोने का कारण पूछा। बुढ़िया ने रोते हुए कहा गांव में प्रतिदिन एक गरुड़ आता है और एक युवक को खो जाता है। आज मेरे पुत्र की बारी है अब मेरा पुत्र उसे स्थान पर जाएगा जहां गरुड़ आता है जो मेरे पुत्र को खा जाएगा मेरे जीते जी मेरा बेटा मर जाएगा। यह कहकर बुढ़िया जोर-जोर से रोने लगी।
अब देखिए राजा जीमूतवाहन ने कहा माता तुम रो मत आज मैं तुम्हारे पुत्र के स्थान पर वहां चला जाता हूं इस प्रकार गरुड़ मुझे खो जाएगा और तुम्हारा पुत्र बच जाएगा इतना कहकर राजा उसे स्थान पर जाकर लेट गया जहां गरुड़ प्रत्येक रात्रि को आता था। तब समय पर पक्षी राज गरुड़ आए और सोच से नोच नोच कर उनका मांस खाने लगे जब गरुड़ ने उनका संपूर्ण बाया अंग खा लिया तब जीमूतवाहन ने करवट बदलकर अपना दाहिना अंग गरुड़ के सम्मुख रख दिया।
यह देखकर पक्षी राज गरुड़ बड़े आश्चर्य में गरुड़ के मांस खाते समय जीमूतवाहन वहां न तो रोया नहीं चिल्लाया था। और ना ही उसने बचने की कोई चेष्टा की थी। आधा शरीर खाया जाने के बाद राजा अभी तक जिंदा था गरुड़ जी को बड़ा आश्चर्य हुआ गरुड़ जी सोचने लगे कि यह आदमी कोई साधारण मनुष्य नहीं या तो देवता है या फिर कोई महान ऋषि होना चाहिए। गरुड़ जी ने राजा से पूछा तुम मनुष्य तो नहीं जान पड़ते क्या कोई देवता हो तुम कौन हो अपना नाम कल और निवास स्थान बदलाव।
पीड़ा से व्याकुल राजा जीमूतवाहन ने कहा पक्षीराज आपका यह प्रश्न व्यर्थ हैं आप अपनी इच्छा अनुसार मेरा मांस खाइए और अपनी भूख मिटाइए। यह सुनकर गरुड़ जी को और भी अधिक आश्चर हुआ गरुड़ जी ने अपने चमत्कार से राजा के शरीर को पूरा कर दिया। अब जीमूतवाहन वहां पहले से भी अधिक स्वस्थ और सुंदर युवक बन गए थे। अब गरुड़ जी ने आदर पूर्वक राजा से उनका परिचय एक बार फिर पूछा।
राजा बोले हे गरुड़ देव मेरा नाम जीमूतवाहन है। मेरे पिता का नाम सालीवाहन वहां और माता का नाम महारानी सौम्या है। हम सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं। यह सुनकर गरुड़ ने कहा है राजन मैं तुम्हारी दयालुता और त्याग की भावना देखकर बहुत प्रसन्न हो तुम मुझसे कोई भी मनचाहा वरदान मांग लो। राजा ने कहा है पक्षीराज यदि आप मुझे कोई वरदान देना चाहते हैं तो एक वरदान दीजिए कि आपने अभी तक जितने भी मनुष्यों को खाया है वे सभी जीवित हो जाए। अब आगे से आप यहां के युवकों को ना खाएं। यहां उत्पन्न होने वाले सभी बालक लंबी आयु को प्राप्त करें। गरुड़ जी ने तथास्टू कहा और उड़कर नाग लोक चले गए।
नागलोक से अमृत लाकर उन्होंने लाए हुए मनुष्यों के हड्डियों के ढेर पर डाल दिया जिससे वे सभी मनुष्य जीवित हो गए। राजा जीमूतवाहन वहां अभी भी वही खड़े थे गरुड़ जी ने राजा से कहा मैं आज संसार के कल्याण हेतु एक वरदान दे रहा हूं। आज आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी है यह अष्टमी सप्तमी रहित और अत्यंत शुभ है। आज तुमने यहां की प्रज्ञा को जीवन दान दिया है और मेरे द्वारा खा गए हजारों मनुष्यों को पुनः जीवित कराया है। आज से यह तिथि अत्यंत पवित्र और ब्रह्म भाव से युक्त हो गई है। मैं यह अमृत तीनों लोकों द्वारा पूजित भवानी दुर्गा जी से लाया हूं।
भवानी दुर्गा जी के द्वारा दिए गए अमृत द्वारा ही इन सभी मनुष्यों को जीवन दान मिला है यही कारण है कि मातेश्वरी दुर्गा जी का एक नाम जीवित्पुत्रिका भी है।
गरुड़ जी ने आगे कहा राजन आज के बाद इस तिथि को जो स्त्रियां जीवित्पुत्रिका माता के रूप में दुर्गा जी तथा कुश नमक घास से तुम्हारी आकृति बनाकर दुर्गा जी के साथ-साथ तुम्हारी भी पूजा करेंगे उसका सौभाग्य और वंश निरंतर बढ़ता रहेगा। इस बात में जरा भी संशय नहीं।
अपनी बात को स्पष्ट करते हुए गुरु जी ने कहा है राजा जी मत वहां जिस दिन उदया तिथि अष्टमी हो अर्थात सप्तमी से रहित अष्टमी को ही यह व्रत करना चाहिए। सप्तमी युक्त अष्टमी को यह व्रत करने से इसका कोई फल नहीं मिलेगा। अतः शुद्ध अष्टमी को यह व्रत करके अगले दिन नवमी तिथि में ही इसका पारण करना चाहिए। यदि इन बातों का ध्यान ना रखा जाए तो व्रत का प्रभाव नष्ट हो जाएगा। अब देखिए जीवित वहां को यह वरदान देकर गरुड़ जी भगवान विष्णु के पास बैकुंठ चले गए। राजा जी मत वहां पहले तो अपने ससुराल आए और वहां से विदा लेकर अपनी पत्नी सहित अपने नगर में गए।
महर्षि धाम मैं द्रौपदी को यह संपूर्ण वृतांत सुनने के पश्चात कहा है देवी मैंने एक अतिशय दुर्लभ वृतांत तुमको सुनाया है तुम मेरे द्वारा वर्णित विधि विधान से पूरी भक्ति भावना के साथ यह व्रत करो इस व्रत में तुम दुर्गा जी तथा कुशा घास से बनाई गई राजा जी मत वहां की पूजा करो और नवमी को ही तुम्हारी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होगी एक।